प्रलोभन आते हैं लेकिन फैसला आपको करना है!….🖋️ नपसा
यह उस समय की बात है जब मेजर जनरल ध्रुव सी कटोच, जो अब सेंटर फॉर लैंड वेलफेयर स्टडीज में एडिशनल डायरेक्टर हैं, सोलह बरस के थे। उनके पिता आर्मी में कर्नल थे। अजमेर में एक बड़े से सरकारी बँगले के अलावा उनके परिवार के पास न तो कार थी, न स्कूटर और न ही फ्रिज। इसके बावजूद उनके परिवार को कभी नहीं लगता कि उनके पास किसी चीज की कमी है। उनका परिवार हमेशा रिक्शे से ही आना-जाना करता और उन्होंने कभी निजी कार्य के लिए सरकारी जीप का इस्तेमाल नहीं किया। हालाँकि एक शाम जूनियर कटोच ने हिम्मत जुटाकर अपने पिता से पूछा, 'डैड, आखिर आप हमें कभी-कभार भी ऑफिस की जीप इस्तेमाल क्यों नहीं करने देते?' सीनियर कटोच उस वक्त रम का एक पैग लेकर बैठे ही थे। ध्रुव की माँ ने उन्हें प्रश्नसूचक निगाहों से देखा, लेकिन कुछ कहा नहीं। कर्नल ने एक घूँट भरा और बेटे की आँखों में आँखें डालते हुए बोले, 'मैं ऐसा करने देता, लेकिन नाशपाती मेरे गले से नीचे नहीं उतरेगी।'
'कौन सी नाशपाती डैड?' बेटे ने हैरान होते हुए पूछा।
कर्नल थोड़ा रुके और फिर बोले, 'उस वक्त मैं तुम्हारी उम्र का रहा होऊँगा। मैं दोस्तों के साथ खेलने गया था। गाँव में एक जगह फलों का बहुत सुंदर बगीचा था, जिसके पेड़ों पर पकी रसीली नाशपातियाँ लटक रही थीं।
इन्हें देखकर हम बच्चों का मन ललचा गया। हम बाग में घुसे और इतनी नाशपतियाँ तोड़ लीं, जिन्हें हम सुरक्षित वापस ले जा सकें। इस चोरी के माल में से अपना हिस्सा लेकर मैं इस तरह शान से घर लौटा, जैसे कोई योद्धा जंग जीतकर लौटा हो।' उन्होंने आगे कहा…